जयंत नेत्र भंग लीला का किया गया मंचन

29 सितम्बर को जयंत नेत्र भंग, अनुसुईया सम्बाद अत्रिमिलन, राक्षस बध


गाजीपुर। अति प्राचीन रामलीला कमेटी हरिशंकरी की ओर से लीला के दशवे दिन 29 सितम्बर दिन गुरूवार को वेदपुरवॉ मोहल्ले के अन्तर्गत अर्बन बैंक के निकट राजा शम्भूनाथ के बाग में बन्दे वाणी विनायको आदर्श रामलीला मण्डल के द्वारा जयंत नेत्र भंग, माता अनुसुईया सम्बाद, अत्रिमिलन, राक्षस बध, नामक लीला का मंचन किया गया।

लीला के दौरान दर्शया गया कि जिस समय से भरत जी के अयोध्या आने के बाद जहॉ श्री राम प्रभु अपनी भार्या सीता का फुलो से श्रृगांर कर रहे थे तो वही पर इन्द्र का पुत्र जयंत कौवे का रूप बनाकरके देखा श्री राम सीता का श्रृगांर कर रहे है तो उसने सोचा की अगर श्रीराम भगवान है तो इनके बल को अजमाने की कोशिश किया व सीता जी के चरणों में अपने चोच से उनके पैर पर प्रहार करके भागा। जिससे सीता जी के चरणों से खुन बहने लगा। सीता जी के चरणो में खून बहता देखकर श्री राम घबरा गये एक तृण का अनुसंधान करके जयंत के पीछे छोड़ देते है। जब जयंत (कौवा) ने देखा कि श्रीराम द्वारा छोड़ा तृण मेरा पीछा कर रहा तो वह घबरा कर अपने पिता ब्रह्मा तथा शंकर जी के पास अपने सहायता के लिये गुहार लगाता है। ये दोनो देवताओं ने जंयत के सारे बातों को सुना तो किसी ने उसके मदद करने की साहस नही की और उसे बैठने तक नही कहॉ गया। अतं वह निराश होकर वापस लौटता है तो रास्ते में भगवत भजन करते हुए देवर्षि नारद से भेट हो गई। जयंत ने श्रीराम से बैर के सम्बन्ध में सारी बाते बताया तो नारद जी ने कहा हे जयंत तुम श्रीरघुनाथ जी के शरण में जाओं वही तुम्हरा रक्षा कर सकते है। अतः आप उनके शरण में जाओं इतना सुनते ही जयंत वापस रघुनाथ जी के शरण में जाता है उसके अवगुणों को ध्यान देते हुए श्रीराम ने उसके ऊपर दया करके एक ऑख फोड़ करके छोड़ दिया।

इसके बाद प्रभु श्रीराम जंगलो, पहाड़ों को पार करते हुए ऋषि अत्रि मुनि के आश्रम पे पहुचते है अत्रिमुनि श्रीराम के आने की सुचना पाते ही ऋषि अत्रि अपने आशन से उठ करके आते है तथा श्रीराम, लक्ष्मण, सीता को आसन देकर उनका स्तुति करते है नमामि भक्तवत्सलम् कृपालु शील कोमलम् भजामि तेयपदांम्भुजम् अका मिनां स्वधामिदं से स्तुति करते है। तथा उन्हे कन्द मूल देकर फल समर्पित करते है। उधर ऋषि पत्नी अनुसुईया सीता जी को अपने आश्रम के अन्दर ले गयी तथा वह आशन देकर सीता जी को बैठाया और नारी धर्म के बारे में सीता जी को समझया कि हे सीते नारी वह है जिसका धर्म कर्म पति के चरणों में समर्पित हो शस्त्रों कहा है कि एकै धर्म एक व्रत नेमा काय वचन मन पति पद प्रेमा और बतायी कि जो नारी पति को अपमानित करती है वह नरकागामी होती है। कहा गया कि ऐसे पति कर किये अपमाना नारी पायी यमकुर दुख नाना। हे सीते इसके अलावा भी नारी धर्म का जो स्त्री पालन करती है वह परम् सौभाग्यवान होती है और जब अपने शरीर को छोड़ती है तो उसके सम्मान देवतागण करते हुए सीधे वैकुण्ठ को ले जाते है इस प्रकार माता अनुसूईया ने सीता जी को नारी धर्म के बारे में बताकर सीता जी को ससम्मान विदा करती है।

श्रीराम ऋषि अत्रि मुनि से आज्ञा लेकर घने जंगलों में जाते है तो बीच में कबन्ध नामक राक्षस अपने लम्बे हाथ को बढाते हुए सीता जी पर प्रहार करता है उसी समय लक्ष्मण अपने तीखे तलवार से उसके हाथ को कई खण्डों में काट डाला तथा श्रीराम ने अपने बाणों से उसका बध कर डाला।

इस अवसर पर कमेटी के मंत्री ओमप्रकाश तिवारी (बच्चा) उपमंत्री पं0 लवकुमार त्रिवेदी (बड़े महराज), कोषाध्यक्ष रोहित कुमार अग्रवाल, प्रबंधक बीरेश राम वर्मा, उपप्रबंधक मयंक तिवारी, अजय पाठक (एडवोकेट), पं0 कृष्ण बिहारी त्रिवेदी (पत्रकार), राम सिंह यादव, राजकुमार शर्मा उपस्थित रहे।

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