शूर्पणखा नाक कटइया, खरदूषण बध, सीता हरण का किया गया लीला मंचन

शूर्पणखा नक्कटया, खरदूषण,सीताहरण


गाजीपुर। अति प्राचीन श्रीरामलीला कमेटी हरिशंकरी के तत्वाधान में लीला के ग्यारवे दिन 1 अक्टूबर शनिवार शाम 7 बजे वन्दे वायी विनायको रामलीला मण्डल के द्वारा रामलीला मैदान में शूर्पणखा नाकक्टइया, खरदूषण बध, सीता हरण से सम्बन्धित लीला का मंचन किया गया। लीला के दौरान श्रीराम बनवास के दौरान जंगलों को पार करते हुए पंचवटी पहुचते है। वहॉ सुन्दर स्थान देखकर पर्नकुटी का निर्माण करके निवास करते है। अचानक लकां नेरश रावण की बहन घूमती हुई पंचवटी पहुचती है। वहॉ दो वीर पुरूषों को देखकर मोहित हो जाती है तथा श्रीराम को देखकर अपनी शादी की बातर करते हुए कहती है कि। ‘‘तुम्हसम पुरूष न मोसम नारी यह संयोग विधि रचेहू बिचार‘‘ हे राम मै तुमसे विवाह करना चाहती हूॅ। श्रीराम ने उसके वार्ता सुनकर कहते है कि मेरा विवाह तो हो चुका है तुम चाहो तो मेरा छोटा भाई है उससे बात करों। वह लक्ष्मण के पास गई लक्ष्मण ने उसके बातों को सुनकर उसको श्रीराम के पास भेजदिया अन्त में वह दोनो भाईयो से निराश होकर असली रूप में आकर सीता पर झपटी। लक्ष्मण ने राम के ईशारे पर शूर्पणखा के नाक अपने तलवार से काट देते है। वह खून से लथपथ होकर खरदूषण के पास गई। उसने खरदूषण से आपबीती सही बातों को कहती है कि दोनों भाइयों ने मेरे नाक को काट दिया। खरदूषण अपनी बहन की दृश्य देखकर क्रोधित होकर चतुरंगिणी सेनाओं के साथ रथ पर सवार होकर श्रीराम, लक्ष्मण से युद्ध करने युद्ध भूमि में चल देते है। युद्ध शुरू हो जाता है। अन्त में श्रीराम के द्वारा खरदूषण का बध कर दिया जाता है। शर्पणखा अपने दोनों भाई खरदूषण को मारा गया देखकर वह विलाप करती अपने भाई लकां नरेश रावण के दरवार में पहुचती है। रावण अपने बहन को खून से लथपथ देखकर घबराकर पूछता है। कि यह दशा किसने किया। शूर्पणखा कहती है कि मै भ्रमण के दौरान पंचवटी गई ाी वहॉ दो वीर पुरूष अयोध्या के राजा दशरथ पुत्र राम, लक्ष्मण अपनी सुन्दर स्त्री के साथ रहते है। राम के छोटे भाई ने मेरी यह दशा की है। रावण इतना सुनते ही गुस्से में अपने दरवार से उठकर अपने कक्ष में गया अपने महारानी मंदोदरी से शूर्पणखा की दशा के बारे में बताते हुए मैपार होकर पुष्पक विमान से अपने मामा मारीच सोने के मृग बनकर घूमता है। सीता ने देखा कि सोने का मृग घूम रहा है श्रीराम से शिकार करने को वाध्य करती है श्रीराम ने एक वाण चलाया कि वह हे लक्ष्मण की अवाज में चिलाने लगा। सीता ने अवाज सूना तो वह कहती है लक्ष्मण तुम्हारे भाई संकट में है जाओ उनका मदद करो। सीताजी के बार-बार कहने से लक्ष्मणजी अपने बाणों से कुटिया के चारो तरफ लक्ष्मण रेखा खीचकर कहते है कि आप इस रेखा के बाहर नही निकलने का अनुरोध किया। इतना कहने के बाद लक्ष्मणजी भाई की मदद के लिए धनुष वाण लेकर निकल जाते है। कुटिया को सुना पाकर रावण साधू के भेष में आकर भिक्षा का गुहार लगाता सीताजी कुटिया से थाली में कन्दमूल लेकर आती है। और साधू रूपी रावण से कहती है महाराज भिक्षा ग्रहण करे। परन्तु रावण कहता है कि रेखा के बाहर आकर भिक्षा दो तभी भिक्षा ग्रहण करूंगा। अंत में सीता जयोंही रेखा के बाहर आती है। तो मौका पाकर रावण ने सीता को रथ पर बिठाकर लंका के लिए प्रस्थान करता है।
इस अवसर पर मंत्री ओमप्रकाश तिवारी, उपमंत्री पं0 लव कुमार त्रिवेदी, कोषाध्यक्ष रोहित कुमार अग्रवाल, प्रबन्धक वीरेश राम वर्मा, उपप्रबंधक मयंक तिवारी, कृष्ण बिहारी त्रिवेदी पत्रकार, डॉ0 प्रेम तिवारी, राम सिंह यादव आदि उपस्थित रहे।

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