मुनी आगमन ताडका वध सीता राम मिलन

मुनी आगमन ताडका वध सीता राम मिलन

गाजीपुरअति प्राचीन श्रीराम लीला कमेटी हरिशंकरी के तत्वावधान में लीला केे दूसरे दि बुधवार को शाम 7ः00 बजे मुनि आगमन, ताड़का वध तथा सीता राम मिलन लीला का मंचन किया गया। बताते चले कि एक समय महर्षि विश्वामित्र अपने शिष्यों के साथ अपने सिद्ध आश्रम में यज्ञ का अनुष्ठान कर रहे थे कि अचानक सुबाहू मारीच नामक राक्षस उनके हवन कुण्ड में हड्डियो का ढेर तथा ऋषियों के खून इकट्ठा करके यज्ञ विध्वंस कर देते थे। महर्षि विश्वामित्र राक्षसों से परेशान होकर अपने आश्रम से अयोध्या के लिए राम लक्ष्मण को मांगने राजा दशरथ के पास पहुँचते है जब महाराज दशरथ को दूतों द्वारा पता चला कि विश्वामित्र मुनि दरवाजे पर खड़े है तो अपने कुल गुरू शतानन्द और ब्राम्हणों को लेकर उनके स्वागत केे लिए राज दरबार के गेट पर पहुँचते है उन्होंने महर्षि विश्वामित्र को देखकर साष्टांग दण्डवत प्रणाम किया और पूछा कि हे मुनि केहि कारण आगमन तुम्हारा कहहू सोनाथ मोहि विस्तारा इतना बात सुननेे के बाद विश्वामित्र ने कहा कि महाराज दशरथ मेरे यज्ञ हवन में सुबाहू मारीच नामक राक्षस विध्वंस कर दे रहे है मैं आपके पास आपके दोनों पुत्र श्रीराम व लक्ष्मण को लेने आया हूँ, विश्वामित्र की बात को सुनकर राजा दशरथ ने पहले कहा कि हे मुनि ये दोनों बालक छोटे है बड़े-बड़े राक्षसों का सामना कैसे कर सकते है इसके बाद महर्षि विश्वामित्र क्रोधित होते है उनके क्रोध को देखकर कुल गुरू वशिष्ठ ने अनेकों प्रकार से महाराज दशरथ को समझा-बुझाकर कहा कि हे राजन महर्षि विश्वामित्र उन दोनों राक्षसों को अपने श्राप से भष्म कर सकते थे परन्तु वे ऐसा न कर पायेंगे।

उनका सोचना हैं कि इसका सारा श्रेय आपके पुत्रों को देना चाहते है, महर्षि वशिष्ठ के बातों को ध्यान देते हुए तथा उनके आज्ञा से महाराज दशरथ अपने दोनों पुत्रों श्रीराम व लक्ष्मण को महर्षि विश्वामित्र के साथ यज्ञ की रक्षा के लिए भेज देते है। महर्षि विश्वामित्र श्रीराम व लक्ष्मण को लेकर अपने आश्रम के लिए चल देते है, कुछ दूर पहुँचने पर घोर जंगल आया वहाँ पर श्रीराम व लक्ष्मण ने एक पत्थर को देखा उन्होने कहा कि हे महर्षि ये सुनसान जंगल में ये पत्थर किसका है, महर्षि विश्वामित्र ने श्रीराम से कहा हे राम यह पत्थर गौतम ऋषि की पत्नी अहिल्या का है, गौतम ऋषि अपने श्राप से अपनी पत्नी को पत्थर बना दिया। अतः वह आपके चरण रज को चाहती है, गुरूदेव के आज्ञा पाकर श्रीराम ने पत्थर को अपने चरण रज से स्पर्श कर दिया जिससे वह पत्थर नारी के रूप में परिवर्तित हो गयी और अहिल्या श्रीराम जी का स्तुति करते साकेतपुर को चली गयी। श्रीराम लक्ष्मण विश्वामित्र के साथ आगे चलते है तो गंगा नदी के पास पहुँचकर उन्होंने गंगा जी का परिचय कराते हुए कहा कि हे राम ये मोक्ष दायिनी गंगा को आपके पूर्वज भगीरथ तपस्या करके धरती पर लाये है। उसी स्थान पर बैठ करके विश्वामित्र ने श्रीराम लक्ष्मण को पुष्ट देकर आदेश दिया कि हे राम आप दोनों भाई पतित-पावनी माँ गंगा का पूजन करे, पूजन-अर्चन के बाद विश्वामित्र मुनि श्रीराम लक्ष्मण को लेकर अपने आश्रम के लिए प्रस्थान कर देते है। थोड़ी दूर पहुँचने पर उन्हें घनघोर जंगल दिखायी दिया उसी जंगल के बीच श्रीराम ने पद चिन्ह देखा। पद चिन्ह देखकर श्रीराम ने पूछा कि हे मुनि यह पद चिन्ह किसका है, महामुनि विश्वामित्र ने कहा कि हे राम यह जंगल ताडका वन के नाम से विख्यात है। यही पर राक्षसी ताड़का कही छिपी हुई है, इतना सुनते ही श्रीराम ने अपने धनुष से टंकार किया। टंकार सुनकर राक्षसी ताड़का महामुनि विश्वामित्र के ऊपर प्रहार करना चाही। इतने में श्रीराम ने एक ही बार में अपने बाण से राक्षसी ताडका का वध कर डाला। इसके बाद विश्वामित्र मुनि यज्ञ हवन सकुशल सम्पन्न होने के बाद दूसरे दिन महाराज जनक द्वारा निमंत्रण पाकर जनकपुर के लिए यज्ञ उत्सव देखने के लिए चल देते है। वहाँ पहुँचकर उन्होने आम्र पल्लवी आश्रम में एक दिन विश्राम करते है दूसरे दिन महर्षि विश्वामित्र के पूजा के लिए श्रीराम बगीचे में पहुँचते है जहाँ पर सीता जी अपने भ्रमण केे दौरान पुष्प वाटिका मे थी। वहीं सीता और राम का सुन्दर मिलन होता है।

इस अवसर पर कमेटी के मंत्री ओमप्रकाश तिवारी, उपमंत्री लवकुमार त्रिवेदी, प्रबन्धक दिनेश राम वर्मा, उप प्रबन्धक मयंक तिवारी, कोषाध्यक्ष रोहित कुमार अग्रवाल, राजेश प्रसाद, अशोक अग्रवाल, विशम्भर नाथ गुप्ता, डा0 गोपाल पाण्डेय, पं0 कृष्ण कृष्ण बिहारी त्रिवेदी पत्रकार व रामसिंह यादव उपस्थित थे।

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