शेवरी का फल खाना, हनुमान राम मिलन और सुग्रीव मित्रता

गाजीपुर।अति प्राचीन रामलीला कमेटी हरिशंकरी के तत्वाधान में वन्दे वाणी विनायकौ आदर्श श्रीराम लीला मण्डली के द्वारा स्थानीय लंका के मैदान में लीला के 12वें दिन शनिवार सायं 7ः00 बजेे शेवरी का फल खाना, श्री हनुमान राम मिलन और सुग्रीव मित्रता के लीला का मंचन किया गया। लीला होने से पूर्व कमेटी के मंत्री ओमप्रकाश तिवारी, प्रबन्धक विरेश राम वर्मा, कोषाध्यक्ष रोहित अग्रवाल, भगवान श्रीराम की आरती करने के बाद लीला का शुभारम्भ किया गया।
लीला में दर्शाया गया हैं कि श्रीराम, लक्ष्मण शिकार खेलकर जब कुटी पर आते है तो वे दोनों भाई सीता को न पाकर निराश होे जाते है और दोनों भाई कन्दरा पर्वतों तथा जंगलों को पार करते हुए सीता की खोज करते है। इस दौरान वे दोनों श्रीराम व लक्ष्मण जीव जन्तुओं से पूछते हैं कि हे खग मृग हे मधुकर श्रेनी तुम देखी सीता मृगनयन, इस प्रकार रोते हुए सभी जीव जन्तुओं से पूछते हुए चले जाते हैं कुछ दूर जानेे पर उन्होंने मूर्छित पड़े गिद्ध राज जटायु को देखा जहाँ जटायु बेहोश हो कर जमींन पर गिरकर पड़ा था, उसके छटपटाहट को देखकर श्रीराम लक्ष्मण उसके पास जाते है, गिद्ध राज जटायु से पूछते है कि आपकी दशा किसने किया उनके बात को सुनकर जटायु ने कहा कि हे प्रभु इसी जंगल से होता हुआ लंका पति रावण आकाश मार्ग से सीता को हरण करके जा रहा था मैंने उस पर लपका और युद्ध भी किया लेकिन युद्ध के दौरान उसने अपने चन्द्रहास तलवार से मेरे दोनों पंखो को काट कर मूर्छित कर दिया और मैं बेहोश हो कर गिर पड़ा। तब से मैं आपके आने की राह देख रहा था, प्रभु आपके दर्शन से मेरे जीवन धन्य हुए, अब मैं चलना चाहता हूँ इतना कहने के बाद प्रभु के गोद में गिद्ध राज जटायु अपने नश्वर शरीर को छोड़ देता है। इसके बाद श्रीराम आगे चलते हुए माता शेवरी के आश्रम के निकट पहुँचते है, जहां शेवरी दोनों वीरों देखकर उनका परिचय पूछती है तब श्रीराम ने बताया कि मैं अयोध्या नरेश राजा दशरथ का पुत्र राम और ये मेरा छोटा भाई लक्ष्मण है हे भामिनी मैं सीता की खोेज करते-करते आपके आश्रम पर आया हूँ। इतना सुनते ही शेवरी भाव विभोर होकर उन्हें षाष्टांग दण्डवत करते हुए अपने नेत्रों के जल से भगवान श्रीराम के चरण को पखारती है और अपने आप को धन्य महसूस करती हैं। इसके बाद वह अपने आश्रम के अंदर ले जा कर एक सुन्दर आसन पर उन्हें बैठा करकेे जंगलों से लाये हुए कन्द मूल फल को थाली में सजा करके प्रभु श्रीराम के पास रख देती है और अपने हाथों से उक्त कन्द फलों को चीख-चीख कर प्रभु को अर्पण करती थी। प्रभु श्रीराम बडे चाव से उसके दिए हुए फल को खाते है और आनन्दित होते है। इसके बाद उसके भक्ति को देखकर प्रभु श्रीराम ने नव प्रकार की भक्ति की शिक्षा दी और माता शेवरी से सीता केे बारे में पूछा माता शेवरी ने कहा कि हे प्रभु आप दक्षिण की ओेर जाये ऋष्य मुक पर्वत पर जहाँ सुग्रीव अपने बड़े भाई बाली डर से पर्वत पर निवास करता था। उसने देखा कि दो वीर हमारे पर्वत की ओर चले आ रहे है, वे डर के मारे श्री हनुमान को बुला करके कहा कि हे हनुमान आप ब्राहृम्ण का वेश बनाकर दो वीरों के पास जाये और उनका परिचय पूछे हनुमान अपने मंत्री सुग्रीव से आज्ञा लेकर श्रीराम केे पास पम्पा सर सरोवर के पास जा करकेे दोनों वीरों का परिचय पूछते है, दोनों वीरों ने ब्राम्हण को देख करके कहा हे ब्राहम्ण देवता मैं अयोध्या नरेश राजा दशरथ का पुत्र राम और ये मेरा छोटा भाई लक्ष्मण है, इतना सुनते ही हनुमान जी खुश हो करके उनके चरणो में गिर जाते है और क्षमा याचना करते है और अपने निज रूप में आकर दोनेां भाईयों को अपने कन्धे पर बिठा कर आकाश मार्ग से ऋ़ष मुक पर्वत पे दोनेां भाईयों को ले जा करके अपने मंत्री सुग्रीव के पास जा कर सूचना देते है सुग्रीव श्रीराम का नाम सुन करकेे अपने आसन से उठकर श्रीराम लक्ष्मण का अभिवादन करता है। लीला के अन्त में मण्डली के द्वारा श्रीराम सुग्रीव मिलन के दृश्य को दिखा कर सारे दर्शकों का मन मोह लिया था।
इस अवसर पर कमेटी के मंत्री ओमप्रकाश तिवारी, प्रबन्धक विरेश राम वर्मा, कोषाध्यक्ष रोहित कुमार अग्रवाल, मनोज कुमार तिवारी, रामसिंह यादव, विशम्भर नाथ गुप्ता आदि रहे।