जिला जेल में बंद कैदियों का किया गया स्वास्थ्य परीक्षण


जिला कारागार में बंदियों के स्वास्थ्य परीक्षण को लगा विशेष स्वास्थ्य शिविर।


एसटीआई, एचआईवी, टीबी व हेपेटाइटिस की जाँच के लिए चलाया गया अभियान।



गाजीपुर। जिला कारागार में रविवार को उ०प्र० राज्य एड्स नियत्रंण सोसाइटी, लखनऊ द्वारा इन्टीग्रेटेड एसटीआई (सेक्सुअली ट्रांसमिटेड डिजीज), एचआईवी (ह्युमन इम्युनडिफिशिएंशी वायरस), टीबी (क्षयरोग) तथा हेपेटाइटिस से बचाव के लिए विशेष स्वास्थ्य शिविर का आयोजन किया गया। प्रभारी मुख्य चिकित्सा अधिकारी व जिला एचआईवी/एड्स नियंत्रण/क्षय रोग अधिकारी डॉ मनोज कुमार सिंह, जिला कारागार अधीक्षक आरके वर्मा व कारागार चिकित्सा अधीक्षक डॉ जीतेंद्र कुमार ने स्वास्थ्य शिविर का शुभारंभ किया। इस मौके पर बन्दियों को यौन जनित रोगों, एचआईवी, टीबी तथा हेपेटाइटिस से बचाव के उपाय तथा परीक्षण में संक्रमित पाये जाने की दशा में नियमित रूप से पूरा उपचार प्राप्त करने के सम्बन्ध में बन्दियों को विस्तार से समझाया गया। चिकित्सा अधीक्षक डॉ जीतेंद्र कुमार ने बन्दियों को नियमित रूप से अपनी स्वास्थ्य जांच कराने, कारागार चिकित्साधिकारी एवं विशेषज्ञ चिकित्सकों द्वारा परामर्शित औषधियों का नियमित रूप से सेवन करने तथा कारागार से रिहा होने के पश्चात भी सरकारी चिकित्सालय के माध्यम से अपने उपचार को नियमित रूप से जारी रखने के प्रेरित किया गया।


जिला कार्यक्रम समन्वयक डॉ मिथलेश कुमार ने बताया कि जिलाधिकारी आर्यका अखौरी के निर्देश के क्रम में रविवार को यूपी एड्स नियंत्रण सोसायटी व राष्ट्रीय क्षय उन्मूलन कार्यक्रम के अंतर्गत विशेष स्वास्थ्य शिविर का आयोजन किया गया। मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ देश दीपक पाल के निर्देशन में आयोजित किए गए शिविर में जिला कारागार के सभी कैदियों की टीबी, एचआईवी सहित अन्य स्वास्थ्य जांच की गई। इसके अलावा समय समय पर स्वास्थ्य जांच कराने के लिए प्रेरित किया गया। जनपद में 23 नवंबर से पांच दिसंबर तक सक्रिय क्षय रोगी खोज अभियान भी संचालित किया जा रहा है।
डॉ मिथलेश कुमार ने ने बताया कि संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने से एड्स की बीमारी नहीं होती है। संक्रमित व्यक्ति के छूने, साथ बैठने और खाने से यह बीमारी नहीं फैलती है। संक्रमित व्यक्ति के शरीर से निकलने वाले द्रव या पदार्थ के संपर्क में आने से कोई भी स्वस्थ व्यक्ति संक्रमित हो सकता है। इसके अलावा रक्त संचरण, असुरक्षित यौन संबंध, असुरक्षित इंजेक्शन साझा करना, संक्रमित गर्भावस्था, प्रसव या स्तनपान द्वारा बच्चे को हो सकता है। इसलिए समय पर जांच करवाना बेहद जरूरी है। उन्होंने बताया कि दो हफ्ते या उससे अधिक खाँसी, खाँसी के साथ बलगम आना, रात में पसीना आना, भूख न लगना और वजन में लगातार गिरावट टीबी हो सकती है। ऐसे लक्षण देने पर तुरन्त नजदीकी स्वास्थ्य केन्द्र पर सम्पर्क करें। इस मौके पर जिला कारागार के समस्त अधिकारी, स्वास्थ्य विभाग की टीम और अधिकारी व स्वास्थ्यकर्मी उपस्थित रहे।

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