आदिवासी और भोजपुरी संस्कृति पर अंतरराष्ट्रीय सेमिनार का हुआ आयोजन

गाजीपुर। शनिवार को ‘परंपराओं का पुनः प्रतिष्ठापन भारत एवं विदेशों में आदिवासी और भोजपुरी संस्कृति के परिप्रेक्ष्य’ विषय पर अंतरराष्ट्रीय सेमिनार का शुभारंभ लंका मैदान हॉल में हुआ। प्रथम सत्र का शुभारंभ मॉरीशस से पधारी डॉ सरिता बुद्धु, तुर्की की प्रोफेसर स्मिता जैसल, अमेरिका से डॉ माइकल बोलोन, लीबिया के प्रोफेसर अनिल प्रसाद के द्वारा हुआ। जीवनोदय शिक्षा समिति के अध्यक्ष प्रोफेसर रामनारायण तिवारी एवं सचिव डॉ जितेंद्र नाथ राय ने उपस्थित प्रबुद्धजनों का स्वागत माल्यार्पण प्रतीक चिन्ह एवं अंगवस्त्रम से किया। इसके पूर्व सरस्वती प्रतिमा पर माल्यार्पण और दीप प्रज्वलन के साथ प्रोफेसर रामनारायण तिवारी ने संगोष्ठी की शुरुआत करते हुए वर्तमान वैश्वीकरण के दौर में भारत एवं विदेशों में आदिवासी और भोजपुरी संस्कृति के पुनः प्रतिस्थापन हेतु अकादमी विमर्श और चर्चा की आवश्यकता बताई।

विषय प्रवर्तन करते हुए रामपुर से आए प्रोफेसर पुष्कर मिश्रा ने परंपरा की व्याख्या करते हुए कहा की परंपरा पश्चिम की ट्रेडीशन का पर्याय नहीं है। परंपरा से आशय है जो निरंतर प्रवाहमान है और समय के साथ परिवर्तित भी होती रहे। भारतीय परंपरा भूत, वर्तमान और भविष्य तीनों को बांधने वाली है। प्रोफेसर अनिल प्रसाद ने सेमिनार के विषय पर विस्तृत बीज वक्तव्य देते हुए कहां की मनुष्य परंपराओं का वाहक है, वही समय-समय पर परंपराओं में हस्तक्षेप कर परिवर्तन भी करता रहता है। परंपराएं प्राचीनता और आधुनिकता दोनों का मेल कराती हैं।

भाषा ही स्मृति और अस्तित्व की वाहक है। अंतर्राष्ट्रीय परिवेश में अपनी पहचान बनाने के लिए अपनी परंपराओं को खारिज या लुप्त होने से बचाने के लिए पुनः स्थापना समय की आवश्यकता है। प्रोफेसर पीके मिश्रा ने परंपराओ की पुनर्स्थापना कैसे किया जाए इस पर अपनी बात रखी जबकि हिमांशु उपाध्याय ने आगाह किया कि यदि हम अपनी परंपराओं की रक्षा नहीं कर पाएंगे तो हमारा समाज, देश व व्यक्ति की पहचान भी लुप्त हो जाएगी। प्रोफेसर एस एन उपाध्याय ने कहा की परंपरा जीने की चीज है सिद्धांत की नहीं।

अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में प्रख्यात साहित्यकार नीरजा माधव ने भोजपुरी की स्थानीयता पर विशेष प्रकाश डाला। आपने भोजपुरी समाज की महिलाओं के व्यवहार एवं संस्कारों के माध्यम से भोजपुरी संस्कृति की रक्षा और प्रसार के बारे में सबको अवगत कराया। प्रथम सत्र का सफल संचालन डॉ जयशंकर सिंह तथा आभार ज्ञापन प्रोफेसर राघवेंद्र पांडे जी ने किया ।

इस अवसर पर स्वामी सहजानंद पीजी कॉलेज के राजनीति शास्त्री डॉ नर नारायण राय की पुस्तक ‘शासन से स्वशासन तक- मेयर’ का विमोचन भी हुआ। इस अवसर पर जीवनोदय शिक्षा समिति द्वारा विशिष्ट पुरस्कार एवं सम्मान भी प्रदान किया गया। प्रोफेसर देवेंद्र कुमार, प्रोफेसर आफताब जैसल, डॉ विश्वनाथ मिश्र, डॉ रंजन चौरसिया, डॉ अक्षय पांडे, डॉ मनोज सिंह आदि को शिक्षक सम्मान से सम्मानित किया गया जबकि असितांग कुमार सिंह को बेस्ट स्टूडेंट अवार्ड दिया गया। इस अवसर पर सुश्री बिजली रानी, पुनेश जी पार्थ, राजीव कुमार ओझा, ईश्वर चंद्र त्रिपाठी, नरेंद्र नीरव, डॉ वैभव सिंह, प्रो बलिराज ठाकुर आदि लोक कलाकारों एवं साहित्यकारों को भी सम्मानित किया गया।


सेमिनार के दूसरे सत्र के दौरान प्रोफेसर आशीष त्रिपाठी, डॉ सुनील कुमार पाठक, प्रोफेसर विश्वनाथ मिश्र, प्रोफेसर प्रभाकर सिंह, डॉ संतन कुमार राम आदि ने अपना विचार व्यक्त किया। वक्ताओं ने परंपराओं की पुनर्स्थापना की चुनौतियों पर बात रखते हुए कहा कि हमें अपनी सिर्फ आधुनिक और समय की मांग के अनुरूप की परंपराओं को ही पुनःस्थापित करना है। जो परंपराएं अमानवीय हैं, जो असामाजिक हैं, और लोकतांत्रिक हैं उन्हें भुलाना ही उचित होगा। द्वितीय सत्र की अध्यक्षता प्रोफेसर रमाकांत सिंह एवं संचालन डॉ निरंजन कुमार यादव एवं आभार ज्ञापन डॉ शिव कुमार ने किया।

कार्यक्रम के दौरान डॉ अशोक कुमार सिंह, प्रोफेसर सानंद सिंह, प्रोफेसर संजय चतुर्वेदी, प्रोफेसर रवि शंकर सिंह, काजी फरीद आलम, डॉ राकेश पांडे, डॉ उमा निवास मिश्रा, प्रोफेसर अनिता कुमारी, संयोजक शेर खान, डॉ घनश्याम सिंह कुशवाहा, डॉ संतोष सिंह, डॉ ऋचा राय, डॉ इकलाख खान, छत्रसाल सिंह, खुशबू यादव के साथ साथ तमाम प्रदेशों से आए लोक कलाकार, प्राध्यापक और शोधार्थी उपस्थित रहे। सेमिनार के प्रथम दिन सांस्कृतिक संध्या के दौरान कवि सम्मेलन एवं लोक सांस्कृतिक कार्यक्रम भी पवन बाबू जी के नेतृत्व में जारी रहा।

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