गाजीपुर। बुधवार को राजकीय महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय महुआबाग के मनोविज्ञान विभाग में ‘विश्व आत्महत्या निवारण दिवस’ के अवसर पर एक लघु संगोष्ठी आयोजित की गई। जिसके माध्यम से दुनिया भर में आत्महत्या की बढ़ती प्रवृत्ति और उसके निवारण के विविध पक्षों पर छात्राओं के मध्य चर्चा की गई। इस दौरान मनोविज्ञान विभाग के प्रभारी डॉ शिव कुमार ने कहा कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के साथ मिलकर अंतरराष्ट्रीय आत्महत्या निवारण संघ द्वारा 10 सितंबर 2003 से यह दिवस मनाया जा रहा है ताकि लोगों में मानसिक स्वास्थ्य एवं आत्महत्या निवारण से जुड़े मुद्दों पर जागरूकता फैलाई जा सके।

विश्व में प्रतिवर्ष 8 लाख से अधिक लोग आत्महत्या के कारण मृत्यु को प्राप्त होते हैं। जबकि दक्षिण एशिया में प्रतिवर्ष 2 लाख से अधिक लोग आत्महत्या का शिकार होते हैं। आत्महत्या एक गंभीर जन स्वास्थ्य चुनौती है जो किसी भी बीमारी, युद्ध या आपदा से अधिक जनहानि का कारण है। वर्ष 2024 से 2026 तक के लिए इस दिवस की थीम है कि ‘आत्महत्या से जुड़े मिथक या आख्यानों को बदला जाए'(Change the Narrative on Suicide) ताकि लोग खुलकर बातें करें। अर्थात आत्महत्या के बारे में ‘चुप्पी तोडे, खुलकर बोले’ और हम ऐसा परिवेश तैयार करें जिससे कि आत्महत्या या इससे जुड़े विचारों को समाज में या परिवार में छिपाने तथा इसे कलंक मानने के स्थान पर ऐसी संस्कृति विकसित हों कि लोग खुलकर इस पर चर्चा करें।

इस अवसर पर उपस्थित प्राचार्य डॉ अनिता कुमारी जी ने छात्राओं को संबोधित करते हुए कहा कि आत्महत्या से जुड़ी घटनाओं और प्रवृत्तियों पर चुप्पी के कारण यह समस्या गंभीर होती जा रही है। लोग इस प्रवृत्ति से छुटकारा पाने के लिए मनोवैज्ञानिक या चिकित्सकीय सहायता नहीं प्राप्त करते हैं। यह इसलिए भी आवश्यक है कि आत्महत्या की प्रवृत्ति सभी उम्र, लिंग, क्षेत्र एवं पृष्ठभूमि के लोगों में पायी जाती है। इस अवसर पर पर मनोविज्ञान विभाग की छात्राओं ने आत्महत्या से जुड़े विविध पक्षों पर अपने विचार प्रस्तुत किया। संजना पांडे ने युवाओं और छात्रों में आत्महत्या की प्रवृत्ति पर चर्चा करते हुए बताया कि 15 से 29 वर्ष की आयु वर्ग में मृत्यु का तीसरा सबसे बड़ा कारण आत्महत्या है। युवा प्रायः निराशा, अवसाद या असफलता के चलते आत्मघाती कदम उठाते हैं।

श्रद्धा गुप्ता ने महिलाओं द्वारा की जाने वाली आत्महत्याओं के संदर्भ में कहा कि पुरुषों से अधिक महिलाएं आत्महत्या का प्रयास करती हैं। आत्महत्या के कर्म को कई बार छुपाया जाता है इस कारण आत्महत्या संबंधी सही आंकड़े उपलब्ध नहीं हो पाते हैं। श्रेया वर्मा ने छात्राओं और विद्यार्थी समूह द्वारा छोटी-छोटी बातों पर आवेश में आकर या अत्यधिक ऊंचा लक्ष्य रखने को आत्महत्या का कारण बताया। हुमैरा फातमा ने मित्र बनाने, प्यार बांटने और घर परिवार एवं मित्रों के साथ सुख-दुख शेयर करने की बातें की। समाजशास्त्री डॉ एखलाक खान ने आत्महत्या से जुड़े विभिन्न सामाजिक कारकों की ओर संकेत करते हुए सामाजिक संबंधों में गिरावट, सामाजिक अलगाव, अकेलापन को आत्महत्या का कारण बताया।

कार्यक्रम की आमंत्रित वक्ता डॉ पूजा साहू ने आत्महत्या निवारण के विभिन्न पक्षों पर खुलकर चर्चा किया तथा इन्होंने अपनी कविता के माध्यम से सकारात्मक सोच एवं सामाजिक संपर्क विकसित करने, आसपास के लोगों की सहायता करने, सामाजिक संबंध विकसित करने, अपनो से खुशी के साथ-साथ दुखों को भी साझा करने तथा अपने चेहरे के साथ-साथ अपनो ओचेहरों पर मुस्कान लाने के लिए सदैव प्रयास करने की बात कही।

कार्यक्रम के समापन के अवसर पर आभार व्यक्त करते हुए मानसी अग्रवाल ने कहा कि आत्महत्या का दुष्प्रभाव मित्रों और पारिवारिक जनों पर सर्वाधिक पड़ता है। कार्यक्रम का संचालन आनंदी गुप्ता एवं संयोजन मनोविज्ञान परिषद द्वारा किया जिसमें माही प्रजापति, एल्मा, महक खान, अभिलाषा राय आदि ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
