धनुष मुकुट पूजन नारद मोह रामजन्म लीला

धनुष मुकुट पूजन नारद मोह रामजन्म लीला

गाजीपुर।अति प्राचीन रामलीला कमेटी हरिशंकरी के तत्वाधान में हरिशंकरी राम सिंहासन पर 17 सितम्बर बुधवार की शाम 7:00 बजे सदर विधायक जैकिशन साहू द्वारा वेद मंत्रों च्चारण के साथ धनुष मुकुट का पूजन किया गया। इसके बाद कमेटी के कार्यवाहक अध्यक्ष विनय कुमार सिंह, उपाध्यक्ष गोपाल जी पाण्डेय, मंत्री ओमप्रकाश तिवारी, संयुक्त मंत्री, लक्ष्मी नारायन, उपमंत्री पंडित लवकुमार त्रिवेदी, मेला प्रबन्धक मनोज कुमार तिवारी, उपमेला प्रबन्धक मयंक तिवारी तथा वरूण अग्रवाल, कमलेश सिंह उर्फ लाला ने आरती किया। इसके बाद वंदे वाणी विनायकौ आदर्श रामलीला मण्डल के कलाकारो द्वारा मंच पर नारद मोह का लीला दर्शाया गया, एक बार देवर्षि नारद भ्रमण के दौरान एक सुन्दर स्थान पर बैठकर ध्यान मग्न हुए, इसी बीच देवराज इन्द्र को पता चला कि नारद जी समाधि लगाकर बैठे है वे कामदेव को भेजकर नारद जी के समाधि को भंग करने का आदेश देते है। काम देव नारद जी की समाधि भंग करने के लिए काफी कोशिश करते है, फिर भी नारद जी के ऊपर इसका कोई असर नही होता है। अंत में कामदेव हार करके नारद जी के चरणो में दण्डवत करते है। जब नारद जी समाधि से बाहर आये तो उन्होंने काम देव को समझा बुझाकर इन्द्र के पास वापस जाने के लिए आदेश दे देते है। इसी बात को लेकर नारद जी को अहंकार पैदा हो गया वे ब्रहृ्रमा तथा शिव के पास जा करके कामदेव पर विजय प्राप्त करने का संदेश सुनाते है, दोनो देवताओ ने कहा कि हे नारद इस बात को विष्णु जी से मत कहना। परन्तु नारद जी माने नही वे जा करके विष्णु जी से सारी बाते बतला दी विष्णु जी अपने लीला के माध्यम से श्रीनिवासपुर नगर बसाया, वहाँ के राजा शील निधि राजा ने अपने पुत्री विश्व मोहिनी का स्वयंवर रचाया था, घुमते हुए नारद जी श्रीनिवासपुर पहुँचते है वहाँ सजावट देख करके शील निधि के दूतों से पूछते है यह नगर क्यो सजा है, क्या बात है, दूतो ने नारद जी को बताया कि शील निधि की पुत्री विश्व मोहिनी का स्वयंबर है। नारद जी स्वयम्बर में पहुँच जाते है, शील निधि राजा ने देवर्षि नारद को सम्मानपूर्वक स्वयंवर में ले जा करके एक आसन पर बैठाया और अपनी पुत्री के भाग्य के बारे में पूछते है नारद जी ज्यों ही विश्व मोहिनी का हाथ देखते है इसके बाद वे तुरन्त खुश होकर विष्णु जी के पास जाकर कहते है कि हे नाथ आपन रूप देहूं प्रभु मोही आनि भांति नाहि पावो ओही। हे प्रभु आप कृपा करके अपना रूप मुझे देने की कृपा करें जिससे मैं विश्व मोहिनी से स्वयम्वर रचा सकूं। भगवान विष्णु नारद जी के मोह को भंग करने के लिए उन्होंने बंद का रूप दे डाला नारद जी बंदर का रूप लेकर स्वयम्बर में पहुँचते है, उधर विश्व मोहिनी वर माला लिये स्वयम्बर में विचरण करती है इसी बीच भगवान विष्णु वहाँ उपस्थित होते है और विश्व मोहिनी से जयमाल डलवाकर अपनी धाम के लिए प्रस्थान कर जाते है। इस दृश्य कोे देखकर नारद जी हताश हो गये और दूतों से पूछा कि विश्व मोहिनी किसकेे गले में वर माला डाली है दूतो ने कहा कि महाराज श्री हरि विष्णु के गले मे विश्व मोहिनी ने वर माला डाला है। अब नारद जी क्रोधित होकर विष्णु जी के पास जाकर श्राप देते है। जब नारद जी के ऊपर से मोह रूपी पर्दा उठा तोवे जा करके विष्णु जी से क्षमा याचना करते है। विष्णु जी ने देवर्षि नारद जी को समझाते हुए कहा कि हे नारद जी आप जा करके शिव के नाम का जाप करे वहां मेरी माया आपको नही सतायेंगी। इसी क्रम में लीला के दौरान अयोध्या के चक्रवर्ती महाराज दशरथ पुत्र की कामना को लेकर चिन्तित बैठे थे अचानक उनके मंत्री सुमन्त जी ने चिंता का कारण पूछा महाराज दशरथ ने कहा कि मेरे बाद वंश चलाने वाला कोई नही है। इसी कारण चिन्तित हूँ। मंत्री सुमेत ने कहा कि महाराज इस बात को ले करकेे गुरू वशिष्ठ के पास जा करके अपना दुःख-सुख सुनाइये मंत्री सुमन्त के कहने पर महाराज दशरथ गुरू वशिष्ठ के पास जा करके सारा दुःख बताते है महाराज दशरथ के बात को सुन कर गुरू वशिष्ठ ने कहा महाराज आप एक पुत्र के लिए तरस रहे है मैं तो समझता हूँ कि आपको चार पुत्रों की प्राप्ति होगी। अतः आप पुत्र कामेश की यज्ञ की व्यवस्था करे और श्रृंग ऋषि को बुलाकर यज्ञ करावे। महाराज ने गुरू के आदेशानुसार पुत्र कामेष्टि यज्ञ करवातेे है यज्ञ कुण्ड से अग्नि देव प्रकट होकर कटोरे भरे खीर महाराज दशरथ को दिया और बताया कि इस खीर को रानियो में विभाजित कर दीजियेगा महाराज दशरथ ने वैसा ही किया जैसा अग्नि देव ने बताया था। महाराज दशरथ ने कटोरे भरे खीर को महारानी कौशल्या को दिया कौशल्या और कैकेयी ने अपने-अपने हिस्से का भाग सुमित्रा को दिया खीर खाने के बाद प्रभु श्रीराम का प्रभार होते है इसके बाद कैकेयी से भरत सुमित्रा से लक्ष्मण और शत्रु जन्म लेते है। उधर कौशल्या माँ ने प्रभु श्रीराम केे चतुर्भुज रूप को देख करके स्तुति करती है भय प्रकट कृपाला दीन दयाला कौशल्या हितकारी। अन्त में उन्होंने कहा कि प्रभु इतना विशाल रूप में आप हमारे गर्भ से उत्पन्न हुए है। अतः आप बालक का रूप धारण मेरे गोद में खेले। माता के बात को सुन कर प्रभु श्रीराम बालक के रूप में हो करके माता के गोद में खेलने लगते है।
इस अवसर पर कमेटी के कार्यवाहक अध्यक्ष विनय कुमार सिंह, उपाध्यक्ष डा0 गोपाल जी पाण्डेय पूर्व प्रवक्ता, मंत्री ओमप्रकाश तिवारी उर्फ बच्चा, संयुक्त मंत्री लक्ष्मीनारायन, उपमंत्री पण्डित लवकुमार त्रिवेदी उर्फ बड़े महाराज, प्रबन्धक मनोज कुमार तिवारी, उपप्रबन्धक मयंक तिवारी, कोषाध्यक्ष रोहित अग्रवाल, अजय कुमार पाठक, अनुज अग्रवाल, राजेश प्रसाद, अशोक अग्रवाल, सुधीर अग्रवाल, पण्डित कृष्ण बिहारी त्रिवेदी, रामसिंह यादव, प्रमोद कुमार गुप्ता, जैकिशन साहू, आमिर अली आदि रहे।

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