श्री मुनि आगमन, ताड़का वध, लीला सीताराम मिलन
गाजीपुर। अति प्राचीन श्रीरामलीला कमेटी हरिशंकरी की ओर से लीला के दूसरे दिन 18 सितम्बर दिन गुरूवार के शाम 7:00 बजे से वन्दे वाणी विनायकौ आदर्श श्रीरामलीला मण्डल के कलाकारो द्वारा हरिशंकरी स्थित श्रीराम चबूतरा पर मुनि आगमन, ताड़का वध अहिल्या उद्धार तथा सीताराम मिलन लीला का मंचन किया गया। लीला के क्रम में दर्शाया गया कि महामुनि विश्वामित्र अपने आश्रम पर शिष्यों सहित धार्मिक अनुष्ठान कर रहे थे कि अचानक राक्षसो का समूह उनके अनुष्ठान (यज्ञ) को विध्वंस करना शुरू कर दिया।

इससे महामुनि विश्वामित्र चिन्तित हो गये थोड़ी देर बार उन्होंने विचारा कि धरती पर असुरों के समूह का नाश करने के लिए नारायन ने संकल्प लिया था कि अयोध्या के चक्रवर्ती महाराज दशरथ के घर असन्ह सहित अवतार लिया था। यही सोचकर महामुनि विश्वामित्र अपनी यज्ञ की रक्षा हेतु अयोध्या केे लिए चल देते है, वहाँ द्वार पर पहुँचे। दूतों ने महामुनि विश्वामित्र के आगमन की सूचना महाराज दशरथ को देते है, महाराज दशरथ महामुनि के आने पर दरवाजे पर आकर उनका स्वागत करते है और आदर पूर्वक उन्हें अपने राज दरबार में ले जाते है और उन्हें सिंहासन पर विराजमन करके निवेदन करते है कि हे मुनि आपका आगमन का कारण बतावे।

इतना बात सुनकर महामुनि विश्वामित्र ने कि महाराज असुरों द्वारा हमारे यज्ञ में विघ्न पहुँचा रहे है, यज्ञ सफल नही होने दे रहे है। अतः मै आपके पास आपकेे पुत्र श्रीराम लक्ष्मण को लेने आया हूँ, इतना सुनकर महाराज दशरथ ने दोनो पुत्रों को देने से इंकार कर देते है इतने में विश्वामित्र ने क्रोधित में होते है। उनके क्रोध को देखकर महाराज दशरथ के कुल गुरू महर्षि वशिष्ठ महाराज दशरथ महाराज दशरथ को समझाते है कि महाराज दशरथ अपने पुत्रों को महामुनि विश्वामित्र के साथ भेज दे। इसी में सबका कल्याण है इतना सुनने के बाद महाराज दशरथ अपने दोनों पुत्रों रामलक्ष्मण को बुलाकर महामुनि विश्वामित्र को सौंप देते है।

महामुनि विश्वामित्र श्रीराम लक्ष्मण को लेकर अपने आश्रम के लिए प्रस्थान कर देते है, थोड़ी देर बाद घने जंगल में पहुँचकर श्रीराम लक्ष्मण ने एक पद चिन्ह देखा उसके बारे में महामुनि विश्वामित्र से जानकारी लेते है कि हे महामुनि यह पद चिन्ह किसका है। श्रीराम के प्रश्न का उत्तर देते हुए महामुनि विश्वामित्र ने कहा कि हे राम यह पद चिन्ह राक्षसी ताड़का का है वह इसी जंगल में कही छिपी हुई है। इतना सुनने के बाद श्रीराम ने अपने धनुष की टंकार से ताड़का को क्रोधित कर देते है वह क्रोधित होकर महामुनि विश्वामित्र के ऊपर झपटना चाही।

इतने में महामुनि विश्वामित्र के आदेशानुसार श्रीराम ने ताड़का का वध कर दिया लीला के क्रम में महामुनि विश्वामित्र के साथ रामलक्ष्मण आगे चले तो उन्होंने आगे जाने पर एक शिला देखी उसके बारे में महामुनि विश्वामित्र से राम ने पूछा कि हे मुनि यह शिला किसका है, महामुनि विश्वामित्र ने कहा कि हे राम ये गौतम ऋषि की पत्नी अहिल्या का है जो गौतम ऋषि ने श्राप दे करके पत्थर बना दिया है। वह आपके चरण रज को चाहती है इतना सुनने के बाद श्रीराम अपने चरण स्पर्श से उस पत्थर को छू दिया जिससे वह पुनः नारी केे रूप में परिवर्तित हो गयी।

श्रीराम लक्ष्मण महामुनि विश्वामित्र के आश्रम में पहुंचकर उनके यज्ञ की रक्षा किया और दूसरे दिन महामुनि विश्वामित्र से नगर भ्रमण के लिए निवेदन किया महामुनि विश्वामित्र ने कहा कि हे राम जनकपुर नगर भ्रमण करने के साथ ही आप मेरे पूजा के लिए थोड़ा फूल लेते आना, मुनि के आज्ञा अनुसार वे नगर भ्रमण करने चल देते है, उसी दौरान वे एक फुलवारी में जा करके माली से आदेश ले कर फूल तोड़ते है, इसी बीच गौरी पूजा के लिए सीता जी भी उसी बगीचे में जाती है। दोनों एक दूसरे को देखते है वही सीता और राम का मिलन होता है।

इस अवसर पर कमेटी के उपाध्यक्ष डा0 गोपाल जी पाण्डेय पूर्व प्रवक्ता, मंत्री ओमप्रकाश तिवारी उर्फ बच्चा, उपमंत्री पण्डित लवकुमार त्रिवेदी उर्फ बड़े महाराज, प्रबन्धक मनोज कुमार तिवारी, उपप्रबन्धक मयंक तिवारी, कोषाध्यक्ष रोहित अग्रवाल, अशोक अग्रवाल, सुधीर अग्रवाल, पण्डित कृष्ण बिहारी त्रिवेदी, रामसिंह यादव, प्रमोद कुमार गुप्ता, आदि रहे।

