नई दिल्ली। गाजीपुर के लाल अरुण कुमार राय ने असम में फहराया परचम,व्यवसाय के साथ साथ फिल्मी जगत में भी किया नाम रोशन। अरुण को राष्ट्रपति ने किया राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित। 71वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों में असम की फिल्मों और कलाकारों ने उल्लेखनीय सफलता हासिल की। इस अवसर पर राज्य की सिनेमा परंपरा और प्रतिभा को राष्ट्रीय मंच पर सम्मान मिला। समारोह में राष्ट्रपति द्वारा असम की चर्चित फिल्म ‘रंगतापु 1982’ के निर्माता अरुण कुमार राय को राष्ट्रीय सम्मान प्रदान किया गया। यह उपलब्धि न केवल असमिया सिनेमा के लिए गर्व का क्षण है, बल्कि स्थानीय कहानियों और कलाकारों की पहचान को भी नई ऊंचाइयों तक ले गई।
मूलतः अरुण कुमार राय पुत्र स्व ओमप्रकाश राय निवासी ग्राम दहिनवर पोस्ट मछटी भांवरकोल गाजीपुर के रहने वाले हैं। अरुण का गाँव से काफी लगाव रहा है वे समय समय पर अपने गाँव आते रहते हैं। अरुण द्वारा निर्मित ‘रंगतापु 1982’ को मिला नेशनल अवॉर्ड, बयां करती है असम के दर्द-संघर्ष की कहानी 71वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार में ‘रंगतापु 1982’ के निर्माता अरुण कुमार राय को सम्मानित किया गया।

दर्द और संघर्ष की कहानी
फिल्म ‘रंगतापु 1982’ असम के 1980 के दशक की पृष्ठभूमि पर आधारित है. कहानी उन कथित अत्याचारों को सामने लाती है जो स्थानीय लोगों को अवैध प्रवासियों के हाथों सहने पड़े. हालांकि निर्देशक आदित्यम सै़किया का कहना है कि यह कोई राजनीतिक फिल्म नहीं है. ‘रंगतापु 1982’ की कथा मोरम (ऐमी बरुआह) नाम की गर्भवती महिला, और उसकी बहनें रुपाली (कल्पना कलिता) व माला (अलिश्मिता कलिता) के इर्द-गिर्द घूमती है. ये दोनों बहनें एक भयावह सामूहिक दुष्कर्म के आघात से गुजर रही हैं. वहीं रफिजा (रिम्पी दास) एक अवैध प्रवासी महिला है, जो अपने ही समुदाय के पुरुषों द्वारा किए गए शोषण से पीड़ित है. इन चारों महिलाओं की पीड़ा, हिंसा और संघर्ष को फिल्म बेहद मार्मिक ढंग से प्रस्तुत करती है.
असम सिनेमा को नई उड़ान
अरुण कुमार राय की इस ऐतिहासिक सफलता ने न केवल राज्य के कलाकारों और निर्माताओं के लिए गर्व का अवसर प्रदान किया है, बल्कि असमिया सिनेमा को पूरे देश में एक नई पहचान भी दिलाई है. लंबे समय से क्षेत्रीय फिल्मों को मुख्यधारा में अपनी जगह बनाने के लिए संघर्ष करना पड़ता था, लेकिन इस उपलब्धि ने साबित कर दिया है कि असम की मिट्टी से जुड़ी कहानियों और वहां के समाज की संवेदनाओं को भी राष्ट्रीय स्तर पर सराहा जा सकता है. सिनेमा विशेषज्ञों का मानना है कि यह जीत आने वाले वर्षों में युवा निर्देशकों, लेखकों और तकनीशियनों को आगे बढ़ने की प्रेरणा देगी. इससे न केवल फिल्म निर्माण में स्थानीय स्तर पर नए अवसर पैदा होंगे, बल्कि राज्य की संस्कृति, परंपरा और समकालीन चुनौतियों को भी बड़े मंच पर प्रस्तुत करने का रास्ता खुलेगा.