श्री भरत मनावन हुआ विदाई लीला का हुआ मंचन




गाजीपुर । अति प्राचीन श्री रामलीला कमेटी हरिशंकरी की ओर से लीला के आठवें दिन 24 सितंबर को सकलेनाबाद स्थित श्री राम चबूतरा पर लीला के क्रम में भरत मनावन व विदाई लीला हुआ। इसके पूर्व कमेटी के मंत्री ओमप्रकाश तिवारी, उप मंत्री लव कुमार त्रिवेदी, प्रबंधक मनोज कुमार तिवारी, उपप्रबंधक मयंक तिवारी कोषाध्यक्ष रोहित अग्रवाल द्वारा प्रभु श्री राम लक्ष्मण सीता माला पहनाकर आरती पूजन किया गया। इसके बाद बंदे वाणी विनायक को आदर्श रामलीला मंडल के कलाकारों द्वारा सकलेनाबाद स्थित श्री राम चबूतरा पर लीला भरत मनावन व विदाई से संबंधित लीला किया गया।
जिस समय भरत शत्रुघ्न अपने ननिहाल कैकेय देश गए थे। इधर महाराज दशरथ अपने बड़े पुत्र श्री राम के बन में जाने के वियोग में अपने शरीर का त्याग कर देते हैं। महाराज दशरथ के शरीर त्याग करने का सूचना उनके कुल गुरु वशिष्ठ को मिलता है तो वह अपने आश्रम से राज दरबार में आते हैं जहां महाराज दशरथ का पार्थिव शरीर पड़ा हुआ था। उन्होंने महारा दशरथ के शरीर को एक कड़ाही में तेल भरवा कर उसमें रखवा दिया। इसके बाद उन्होंने महामंत्री सुमंत को बुलाकर भरत शत्रुघ्न को कैकेय देश से बुलवाते हैं महामंत्री सुमंत रथ पर सवार होकर के कैकेय देश के लिए प्रस्थान कर जाते हैं। उधर भरत बूरा सपना देखते हैं कि महाराज दशरथ बाल बिखरे हुएऔर तेल से लथपथ होकर दक्षिण दिशा की ओर जा रहे हैं। ऐसे स्वप्न को देखकर भरत घबरा हुए उठते जाते हैं उनके घबराहट को देखकर छोटे भाई शत्रुघ्न घबराने का कारण पूछते हैं। भाई शत्रुघ्न से भरत ने बताया कि भोर में स्वप्न देखा कि पिताजी बाल बिखेरे दक्षिण दिशा की ओर जा रहे हैं। इतना कहते हैं कि थोड़ी ही देर में अयोध्या से रथ द्वारा सुमंत जी ककेय देश पहुंच जाते हैं और पहुंच कर मंत्री सुमंत जी भरत से गुरु वशिष्ट के संदेश को सुनाते हुए अयोध्या के लिए वापस चलने का निवेदन करते हैं। सुमंत जी के संदेश सुनकर भरत शत्रुघ्न नानी नाना से आज्ञा लेकर अयोध्या के लिए प्रस्थान कर जाते हैं।
थोड़ी ही देर में भरत शत्रुघ्न का रथ कैकेय देश से अयोध्या पहुंच जाता है उधर दासी मंथरा आरती की थाली लिए महारानी कैकई के कक्ष के बाहर गेट पर खड़ी होकर भरत के आने की प्रतीक्षा कर रही थी कि इसी बीच भरत शत्रुघ्न का रथ अयोध्या में पहुंच जाता है और भरत शत्रुघ्न रथ से उतरते हैं तो अयोध्या वासी जब भरत शत्रुघ्न दोनों भाइयों को देखा तो सभी ने भरत की ओर से अपना ध्यान हटा लेते है। इस दृश्य को देखकर भरत सोच में पड़ जाते हैं वे सोचते हुए अपने माता महारानी कैकेई के कक्ष में प्रवेश करते है। अपनी माता से अयोध्या में सन्नाटा छाए रहने का और उनके पहनावे के बारे में पूछते हैं इतने में महारानी कैकई भरत से कहती है कि हे पुत्र तुम्हारे पिता महाराज दशरथ के पास हमारे दो वरदान थाती स्वरूप पड़ा था वह थाती स्वरूप को मैंने महाराज से मांग लिया कि पहले में अयोध्या का राज तुम्हारे लिए दूसरे वरदान में श्री राम को 14 वर्ष के लिए वनवास यही यह सुनते ही महाराज ने अपना प्राण त्याग दिया इतना सुनते ही भारत क्रोधित होकर अपनी माता
खरी-कोटी सनाते है और थोड़ी रुकने के बाद वह राज दरबार में राज दरबार में पहुंचते हैं। जहां उनके राजतिलक की तैयारी हो रही थी वहां पहुंचते ही उन्होंने पुरवासियों से कहा कि अयोध्या का राजा महाराज श्री राम ही होंगे आप लोग मेरे साथ भैया श्री राम को मनाने के लिए तैयार होकर चलें।
भरत जी के आदेश अनुसार सभी पुर वरासी श्री राम को मनाने के लिए चल देते हैं।
भरत शत्रुघ्न गुरु वशिष्ट के साथ अयोध्या से रथ पर सवार होकर अपनी तीनों खा माताओ तथा पुरवासियों के साथ श्री राम को मनाने के लि ए वन प्रदेश के लिए तैयार होकर भरत जी के पीछे-पीछे चल देते हैं रास्ते में श्रृंगवेरपुर के राजा निषाद राज गुह से भेंट हो जाती है निषाद राज ने सोचा कि भरत राम से युद्ध के लिए आ रहे हैं वह अपने दल के साथ तैनात हो जाते हैं जब भरत का रथ श्रृंगवेरपुर स्थित उसके राज्य में जाता है तो सामने भारत ने देखा कि निषाद राज के खड़े हैं। रथसहम गया निषाद राज ने दल के साथ आते भरत से पूछा आपके आने का कारण क्या है तो भरत ने बताया कि मैं अपने बड़े भाई श्री राम को मनाने जा रहा हूं श्री राम का नाम सुनते ही निषाद राज भारत के चरणों में झुक जाते हैं उनके झु कते ही भरत की निषाद राज को गले लगा लेते हैं। और निषाद राज के साथ भरतजी भारद्वाज मुनि के आश्रम जहां प्रभु श्री राम लक्ष्मण सीता निवास करते थे और उनके सामने वनवासियों द्वारा भजन कीर्तन कर रहे थे । भारद्वाज मुनि के आश्रम से पूर्व भारत की अपने रथ को रुकवा कर पैदल ही गुरु वशिष्ठ और माता के साथ चल देते हैं। पहुंचने के बाद भरत बड़े भाई श्री राम को देखा दोनों भाई व्याकुल होकर के दौड़ पड़े और जाकर के प्रभु के चरणों में लेट कर दंडवत किया श्री राम ने भरत शत्रुघ्न को अपने चरणों से उठाकर गले से लगा लिया। एक समय मौका पाकर भारत ने गुरु केआज्ञा के अनुसार हिम्मत करके श्री राम से कहा कि भैया मैं आपके बदले 14 वर्ष के लिए वन में रहता हूं आप अयोध्या जाकर अयोध्या का राज्य संभालिए इतना सुनने के बाद श्री राम ने बहुत प्रकार से भारत को समझा बूझकर वापस लौट जाने की आज्ञा देते है श्री राम के बार-बार आजा देने पर अंत में भरत ने दोनों हाथ जोड़कर के कहा कि भैया अगर आप अयोध्या नहीं चलेंगे तो अपना चरण पादुका ही मुझे देने कृपा करें ताकि मैं राज सिंहांसन पर रख कर पूजा करूंगा। श्री राम ने भरत के भक्ति को देखते हुए अपने भाई भारत को अपना चरण पादुका खड़ाऊ देकर अपने प्रिय भाई भरत को देकर विदा किया।
भरत जी अपने बड़े भाई प्रभु श्री राम के खड़ांऊ को अपने माथे पर लगाकर बार-बार रास्ते भर अपने प्रभु को निहारत हुए अयोध्या की तरफ चल देते हैं। दोनों भाइयों के प्रेम को देखकर दर्शक भाव विभोर हो गए और जय श्री राम की घोष से पूरा मेला स्थल गूंजा उठा।
इस दृश्य को देखकर दर्शको द्वारा जयकर घोष से पूरा मेला स्थल गूंजा दिया। भरत शत्रुघ्न का रथ हरिशंकरी श्री राम सिहासन से उठकर मुरली कटरा, पावर हाउस रोड, परसपुरा,झुन्नु लाल चौराहा, आमघाट ददरी घाट चौक महुआ बाग होते हुए बाजे गाजे के साथ शक लेना बाद स्थित श्री राम सिंहासन पर पहुंचा।
श्रीभरत शत्रुघ्न गुरु वशिष्ठ के साथ-साथ कमेटी के मंत्री ओमप्रकाश तिवारी, उप मंत्री लव कुमार त्रिवेदी, उप प्रबंधक मयंक तिवारी ओम प्रकाश पाण्डेय आदि लोग रहे।