जयंत नेत्र भंग, माता अनुसुइया सीता संवाद,ऋषि अत्रि श्रीराम संवाद


गाजीपुर। अति प्राचीन श्री रामलीला कमेटी की ओर से लीला के नौवे दिन 25 सितंबर को मोहल्ला वेदपुरवा स्थित राजा शंभू नाथ के बाग अर्बन बैंक के पास श्री राम चबूतरा पर जयंत नेत्र भंग, माता अनसूया सीता संवाद, तथा ऋषि अत्रि श्री राम संवाद लीला का मंचन किया गया। इसके पूर्व कमेटी के मंत्री ओमप्रकाश तिवारी, उप मंत्री लव कुमार त्रिवेदी, प्रबंधक मनोज कुमार तिवारी, उप प्रबंधक मयंक तिवारी तथा कोषाध्यक्ष रोहित अग्रवाल ने श्री राम लक्ष्मण सीता का पूजन आरती किया। इसके बाद बंदे बाणी विनायकौ श्री रामलीला मंडल के कलाकारों द्वारा लीला में दर्शाया गया है कि एक बार प्रभु श्री राम चित्रकूट में विश्राम कर रहे थे इसी दरमियान श्री राम फूल लोढ कर सुंदर गहने बना कर सीता जी का सिंगार कर रहे थे कि अचानक देवराज इंद्र का पुत्र जयंत कौवे का रूप धारण कर स्फटिक शिला पर बैठे श्री राम प्रभु सीता जी का श्रृंगार करते देख कर उसने श्रीराम के बल को आजमाने हेतु उसने श्री सीता जी के कोमल चरण में अपने चोंच से प्रहार कर देता है और भाग जाता है सीता जी के चरणों से खून बहने लगता है इतने में श्री राम ने सीता जी के चरणों से खून बहता देखकर श्री राम ने अपने धनुष पर सिंक का बाण बनाकर छोड़ दिया वह बाण जयंत का पीछा करने लगा और जयंत आगे आगे भागने लगा। वह भागते हुए ब्रह्मा जी विष्णु हर शिव जी के पास जाकर के सहायता मांगता है। सभी देवों ने उसके भगाने का कारण पूछा तो उसने बताया कि मैंने श्री राम के बल को जानने के लिए कौवे का रूप बनाकर उनके भाग्य सीता के चरणों में चोंच मार दिया उनके चरणों से खून बहते हुए देखकर श्री राम ने धनुष पर सीक का बाण अनुसंधान करके मेरे पीछे छोड़ दिया वह बार मेरा पीछा कर रहा है आप लोग मेरी रक्षा करें देवताओं ने जब इस प्रकार की बातें सुन तो सभी ने उसको सहायता तो दूर बैठने के लिए नहीं कहा। वह निराश होकर वापस आने लगा। रास्ते में देव ऋषि नारद से भेंट हो जाती है वह नारद जी से सारी बातें बता दे देता है। जयंत के सारे बात को सुनकर नारद जी ने कहा कि तुम पुनः श्री राम की शरण में जाकर क्षमा याचना करो वह बड़े दयालु हैं अवश्य तुम्हारे अवगुण को क्षमा कर देंगे। इतना सुनते ही जयंत श्री राम की शरण में जाकर क्षमा याचना मांगता है प्रभु श्री राम ने उसको दीन समझते हुए अपने बाण से उसके एक नेत्र को भंग कर देते हैं।
इसके बाद प्रभु श्री राम महामुनि अत्रि ऋषि के आश्रम पहुंचते हैं ऋषि अत्रि अपने आश्रम में प्रभु के ध्यान में लीन थे। इसी दरमियान इसी प्रभु श्री राम लक्ष्मण सीता उनके आश्रम के अंदर प्रवेश करते हैं श्री राम ने उन्हें ध्यान से जगाया ऋषि अत्रि श्री राम के दर्शन को पकड़ अपना शीश झुकते हुए प्रार्थना करते हैं कि नमामि भक्त वत्सलम् कृपालुशील कोमल भजामि ते पदाम्बुजंअकामिनांस्वधाम्भुजं। स्तुति के बाद ऋषि अत्रि विनती करते हुए कहते हैं कि हे नाथ मेरी बुद्धि आपके चरणों को कभी ना छोड़े ऐसा मुझे वरदान दें।
लीला के क्रम में दर्शाया गया कि श्री सीता जी ऋषि अत्रि की पत्नी माता अनसूया के पास जाकर उनके चरण पड़कर मिलती है सीता जी को अपने पास बैठाया और उन्हें ऐसे दिव्य वस्त्रआभूषण पहनाए जो नित्य नए निर्मल और सुहावने बने रहते हैं। फिर ऋषि पत्नी उनके बहाने मधुरऔर कोमल बाणी से स्त्रियों के कुछ गुण के बारे में बताती है कि हे सीते मैं नारी धर्म के बारे में शिक्षा देना चाहती हूं वह यह है कि एकै धर्म एक व्रत नेमा। काय वचन मन पति पद प्रेमा। दूसरी बात कहती है ऐसे पति कर किए अपमाना।नारी पाई जमपुर दुख नाना । इस प्रकार के शिक्षा देकर सीता जी का सम्मान करती है।
अवसर पर कमेटी के मंत्री ओमप्रकाश तिवारी, उप मंत्री लव कुमार त्रिवेदी, प्रबंधक मनोज कुमार तिवारी, उप प्रबंधक मयंक तिवारी तथा कोषाध्यक्ष रोहित अग्रवाल, कृष्णांश त्रिवेदी सहित अन्य लोग रहे।