
गाज़ीपुर। 26 अक्टूबर को अखिल भारतीय कायस्थ महासभा के तत्वावधान में जिलाध्यक्ष अरूण कुमार श्रीवास्तव की अध्यक्षता में महान पत्रकार एवं स्वतंत्रता संग्राम के सेनानी गणेश शंकर विद्यार्थी की जयंती पर माल्यार्पण कार्यक्रम एवं विचार गोष्ठी आयोजित हुई।
गोष्ठी आरंभ होने के पुर्व महासभा के सभी कार्यकर्ताओं ने उन्हें श्रृद्धांजलि अर्पित करते हुए देश की एकता और अखंडता की रक्षा करने का संकल्प लिया। जिलाध्यक्ष अरूण कुमार श्रीवास्तव ने इस संगोष्ठी में उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि गणेश शंकर विद्यार्थी एक ऐसे क्रांतिकारी पत्रकार थे, जिन्होंने अपनी कलम को हथियार बनाकर अन्याय और अत्याचार के विरुद्ध संघर्ष किया। उनकी लेखनी में वह शक्ति थी, जो न केवल जनमानस को झकझोर देती थी, बल्कि ब्रिटिश हुकूमत की नींव भी हिला देती थी। वे पत्रकारिता को केवल समाचार देने का माध्यम नहीं मानते थे, बल्कि इसे समाज परिवर्तन का सशक्त हथियार मानते थे। उनका पूरा जीवन सत्य, न्याय और स्वतंत्रता की लड़ाई के लिए समर्पित था।
उनका झुकाव शुरू से ही समाज सुधार और राष्ट्रीय आंदोलन की ओर था। उन्होंने अपनी कलम से ब्रिटिश शासन की क्रूर नीतियों का विरोध किया और भारतीयों की पीड़ा को दुनिया के सामने रखा। उन्होंने ‘प्रताप’ नामक अखबार की स्थापना की, जो जल्द ही स्वतंत्रता संग्राम के सिपाहियों की आवाज बन गया। यह अखबार गरीबों, किसानों और मजदूरों की समस्याओं को उठाने वाला प्रमुख माध्यम बन गया।
विद्यार्थी जी की पत्रकारिता निर्भीक और निष्पक्ष थी। वे सत्ता के सामने कभी नहीं झुके और अन्याय के विरुद्ध लिखने के कारण कई बार जेल भी गए। उनके लेखों में समाज के दबे-कुचले लोगों की आवाज थी, जिनका शोषण अंग्रेजी शासन और जमींदारी प्रथा के तहत हो रहा था। वे मानते थे कि पत्रकारिता केवल सूचना देने का कार्य नहीं है, बल्कि यह जनता को जागरूक करने, उनकी चेतना को विकसित करने और अन्याय के खिलाफ खड़ा करने का माध्यम है।
उनकी पत्रकारिता के साथ-साथ, उनका स्वतंत्रता संग्राम में भी महत्वपूर्ण योगदान था। वे महात्मा गांधी और भगत सिंह दोनों के विचारों से प्रभावित थे। जहां एक ओर वे अहिंसक आंदोलनों में भाग लेते थे, वहीं दूसरी ओर वे क्रांतिकारियों के पक्ष में भी खड़े रहते थे। उनका मानना था कि स्वतंत्रता की लड़ाई में हर विचारधारा का सम्मान किया जाना चाहिए।
1931 में, कानपुर में सांप्रदायिक दंगे भड़क उठे। विद्यार्थी जी, जाति और धर्म से ऊपर उठकर, घायलों की मदद के लिए सड़कों पर उतर आए। इसी दौरान, भीड़ ने उन्हें घेर लिया और वे हिंसा का शिकार हो गए। 25 मार्च 1931 को उन्होंने अपने प्राण त्याग दिए, लेकिन उनकी शहादत भारतीय पत्रकारिता और स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में अमर हो गई।
गणेश शंकर विद्यार्थी सिर्फ एक पत्रकार नहीं, बल्कि न्याय और सत्य के योद्धा थे। उनकी लेखनी आज भी हमें सिखाती है कि पत्रकारिता का धर्म सिर्फ खबर देना नहीं, बल्कि समाज को दिशा दिखाना और अन्याय के खिलाफ खड़ा होना है।
इस संगोष्ठी में मुख्य रूप से चन्द्र प्रकाश श्रीवास्तव, शैल श्रीवास्तव, अजय कुमार श्रीवास्तव, मोहनलाल श्रीवास्तव, मनीष श्रीवास्तव, अमरनाथ श्रीवास्तव, आशुतोष श्रीवास्तव, आनंद श्रीवास्तव, अनूप श्रीवास्तव, नवीन श्रीवास्तव , हर्ष, प्रियांशु, आर्यन आदि थे। इस गोष्ठी का संचालन जिला महामंत्री अरूण सहाय ने किया।